(i) ‘लोहा’ से संबंधित शब्द:
लोहा
लोहा एक मूलभूत सामग्री है जिसका लौह अयस्क से निष्कर्षण किया जाता है। शुद्ध लोहे का गलनांक 1530 डिग्री सेंटीग्रेड है और इसका घनत्व 7.86 ग्राम/सीसी है।
लोहा बनाना
लोहा बनाना संबंधित परिवर्तक एजेंट (परिवर्तक) का उपयोग करके लौह अयस्क के परिवर्तन की प्रक्रिया है।
हॉट मेटल (द्रव्य लोहा)
यह एक गर्म, द्रव्य और धात्विक उत्पाद है जो लौह अयस्क को परिवर्तित (सामान्यतया ब्लास्ट फर्नेस या कोरेक्स फर्नेस में) करके प्राप्त किया जाता है।
इसमें लगभग 93-94% लोहा (एफई) और अन्य तत्व/अशुद्धियां, जैसे कार्बन (4% ), सिलिकॉन (~ 1% ), मेंगनीज (+ 1% ), सल्फर और फास्फोरस होता है।
एकीकृत इस्पात संयंत्रों में इस्पात का उत्पादन करने के लिए हॉट मेटल एक प्रमुख आदान है।
पिग आयरन
यह एक ठोस (लम्पी) उत्पाद है जो पिग कास्टिंग मशीन में हॉट मेटल का घनीभवन करके प्राप्त किया जाता है।
विशिष्ट हम्पी शेप के कारण इसे पिग या पिग आयरन कहा जाता है। इसका मोटे तौर पर 2 श्रेणियों/ग्रेडों में उत्पादन किया जाता है।
फाउन्डरी ग्रेड पिग आयरन
कुपोला फर्नेस का उपयोग करते हुए कास्ट आयरन (सीआई) कास्टिंग्स का उत्पादन करने के लिए फाउंडरी में पिग आयरन का उपयोग किया जाता है।
मूलभूत/इस्पात बनाने के लिए ग्रेड पिग आयरन
पिग आयरन (हॉट मेटल सहित) का उपयोग इस्पात का उत्पादन करने के लिए किया जाता है।
स्पंज आयरन (एसआई)/प्रत्यक्ष परिवर्तित लोहा (डीआरआई)/हॉट ब्रिकोटिड आयरन (एचबीआई):
- प्रत्यक्ष परिवर्तित लोहा: यह एक ठोस धात्विक लोहा उत्पाद है जो द्रव्य के रूप में परिवर्तित किए बिना, जैसाकि धमन भट्टी में होता है, उच्च ग्रेड के लौह अयस्क के प्रत्यक्ष परिवर्तन से प्राप्त किया जाता है।
- स्पंज आयरन: स्पंज आयरन स्पंजी माइक्रो स्ट्रक्चर के कारण प्रत्यक्ष परिवर्तित लोहे को स्पंज आयरन भी कहा जाता है।
- हॉट ब्रिकेटिड आयरन: कभी-कभी भट्टी से निकलने वाले डीआरआई/एसआई को ढुलाई/इस्पात बनाने की भट्टी में चार्जिंग की सुविधा के लिए अपेक्षाकृत बड़े कॉम्पेक्ट मास अर्थात ब्रिकेट्स में परिवर्तित किया जाता है जिसे हॉट ब्रिकेटिड आयरन (एचबीआई) कहा जाता है।
- एसआई/डीआरआई/एचबीआई का उत्पादन रोटरी क्लिन (कोयला आधारित संयंत्रों में) में नॉन-कोकिंग कोल की सहायता से या शाफ्ट भट्टी (जिसे गैस आधारित संयंत्र कहा जाता है) में प्राकृतिक गैस की सहायता से लौह अयस्क पेलेट्स या उच्च किस्म के लौह अयस्क लम्प्स को परिवर्तित करके किया जाता है।
- इलेक्ट्रिक भट्टियों जैसे इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) या इंडक्शन फर्नेस (ईआईएफ) में इस्पात का उत्पादन करने के लिए मुख्य रूप से एसआई/डीआरआई/एचबीआई का उपयोग (स्टील मेल्टिंग स्क्रैप के प्रतिस्थानी के रूप में) किया जाता है। तथापि, टिसको अपनी धमन भट्टी में इसका उपयोग लौह अयस्क या/सिंटर के प्रतिस्थानी के रूप में कर रही है।
(ii) ‘ इस्पात’ और ‘ इस्पात उत्पादों’ से संबंधित शब्द:
इस्पात:
इस्पात एक लोहा आधारित अलॉय है जिसमें कार्बन, सिलिकॉन, मेंगनीज आदि होता है।
इस्पात बनाना
इस्पात बनाना स्टील मेल्टिंग शॉप्स (एसएमएस) में उपयुक्त फ्लक्सिस की मौजूदगी में चार्ज सामग्री (हॉट मेटल/स्क्रैप/डीआरआई) में मौजूद अशुद्धियों के चुनिंदा ऑक्सीकरण की प्रक्रिया है।
रूप/आकृति/आकार के अनुसार इस्पात/इस्पात उत्पाद:
द्रव्य इस्पात:
स्टील मेल्टिंग शॉप (एलडी परिवर्तक/इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस/इलेक्ट्रिक इंडक्शन फर्नेस/ऊर्जा इष्टतमीकरण भट्टी) से तत्काल गर्म पिघला हुआ इस्पात उत्पाद। यह पुन: इनगॉट्स/सेमिस में ढाला जाता है। एसएमएस से प्राप्त सह-उत्पाद को एसएमएस स्लेग कहा जाता है।
इनगॉट इस्पात (इनगॉट्स):
- पारम्परिक, वर्टिकल, कॉस्ट आयरन मोल्ड्स, जो पुन: गर्म करने के बाद इंटरमीडिएट/सेमी-फिनिश्ड उत्पाद में रोलिंग करने के लिए अभिप्रेत हैं, में द्रव्य इस्पात के घनीभवन से प्राप्त होने वाला प्रमुख ठोस उत्पाद है।
- इनगॉट्स सामान्यतया बहुत बड़े और भारी होते हैं जिनका वजन 15-20 टन तक भिन्न-भिन्न होता है।
पेन्सिल इनगॉट्स:
मिनी इस्पात संयंत्रों में किलोग्रामों में छोटे इनगॉट्स का उत्पादन किया जाता है।
सेमी-फिनिश्ड इस्पात उत्पाद (सेमिज):
हॉट रोलिंग/इनगॉट्स की फोर्जिंग से (पारम्परिक प्रक्रिया में) अथवा द्रव्य इस्पात की निरंतर कास्टिंग से प्राप्त मध्यवर्ती ठोस इस्पात उत्पादों को सेमिज कहा जाता है। इन्हें सेमिज इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये फिनिश्ड स्टील उत्पादों का उत्पादन करने के लिए आगे रोलिंग/फोर्जिंग करने के लिए अभिप्रेत होते हैं।
सेमिज की विभिन्न किस्में निम्नलिखित हैं:-
- ब्लूम्स: यह एक सेमी-फिनिश्ड उत्पाद है, आम तौर पर यह 5’’X 5’’ (125 मि.मी. X 125 मि.मी.) से अधिक क्रास सेक्शनल आकार के वर्गाकार (कभी-कभी आयताकार) होता है। कुछ आधुनिक मिलों में, ब्लूम शब्द का उपयोग 8’’X 8’’ से अधिक क्रास सेक्शनल आकार के ऐसे उत्पादों को कवर करने के लिए किया जाता है।
ये सामान्यतया हॉट रोलिंग द्वारा हैवी सेक्शनों और शीट पाइलिंग सेक्शन का उत्पादन करने के लिए आदान हैं।
कभी-कभी, जैसाकि वीएसपी में होता है, बिलेट मिल में हॉट रोलिंग द्वारा बिलेट्स का उत्पादन करने के लिए ब्लूम्स का उपयोग किया जाता है। - बिलेट्स: यह एक सेमी-फिनिश्ड उत्पाद है जो ब्लूम्स के समान है, लेकिन अपेक्षाकृत कम क्रास सेक्शनल आकार (सामान्यतया 5’’X 5’’ /7’’X 7’’ आकार का या इससे कम आकार का) का होता है। लम्बे फिनिश्ड इस्पात उत्पादों अर्थात बार्स और रॉड्स, लाइट सेक्शनों आदि के उत्पादन के लिए आदान के रूप में इनका उपयोग किया जाता है।
- स्लैब्स: यह एक सेमी-फिनिश्ड आयताकार, चौड़ा, सेमी-फिनिश्ड इस्पात उत्पाद है जिसका उपयोग हॉट रोल्ड फ्लैट उत्पादों अर्थात प्लेट्स, शीट्स, स्ट्रिप्स आदि का उत्पादन करने के लिए किया जाता है। ये सामान्यतया 150-250 मि.मी. चौड़े होते हैं जिनमें चौड़ाई मोटाई का कम से कम 3 या 4 गुणा होती है।
- पतले स्लैब्स: आधुनिक थिन कास्टिंग मशीन में, द्रव्य इस्पात की सीधे 35-50 मि.मी. के अपेक्षाकृत अधिक पतले स्लैब्स में लगातार ढलाई की जाती है जिनका उपयोग हीटिंग ऑन-लाइन पर फिनिश्ड हॉट रोल्ड फ्लैट उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है।
फिनिश्ड इस्पात
सेमी-फिनिश्ड इस्पात (ब्लूम्स/बिलेट्स/स्लैब्स) की हॉट रोलिंग/फोर्जिंग से यह उत्पाद प्राप्त किया जाता है। इसके अंतर्गत उत्पादों की मोटे तौर पर दो श्रेणियां नामत: लम्बे उत्पाद और फ्लैट उत्पाद आती हैं।
क) लम्बे उत्पाद:
ये फिनिश्ड इस्पात उत्पाद हैं जिनका उत्पादन सामान्यतया प्रयोज्य आकृति/आकार में करने के लिए ब्लूम्स/बिलेट्स/पेन्सिल इनगॉट्स की हॉट रोलिंग द्वारा किया जाता है।
वायर रॉड्स को छोड़ कर, जिनकी आपूर्ति वूंड क्वाइल्स में अनियमित रूप से की जाती है, इनकी आपूर्ति आम तौर पर सीधी लम्बाई/कट लेंग्थ में की जाती है।
लम्बे उत्पादों की विभिन्न किस्में निम्नलिखित हैं:
- बार्स और रॉड्स: ये लम्बे इस्पात उत्पाद हैं जो सामान्यतया बिलेट्स/ब्लूम्स की हॉट रोलिंग/फोर्जिंग से प्राप्त होते हैं। इनमें राउन्ड्स, फ्लैट्स (फ्लेट बार्स), वर्ग, षड्भुज, अष्ठभुज आदि शामिल हैं, जिनका उपयोग पुन: प्रोसेसिंग के साथ/बिना इंजीनियरी और कृषि, घरेलू वस्तुओं, फर्नीचर क्षेत्र आदि में व्यापक किस्म के उत्पादों का उत्पादन करने के लिए सीधे किया जाता है।
- सीटीडी (कोल्ड-वर्क्ड ट्विस्टिड और डिफार्म्ड)/टीएमटी (थर्मो मेकेनिकली ट्रीटिड) बार्स और रॉड्स: इंडेटेशन्स/रिब्स के साथ हॉट रोल्ड राउंड बार्स/रॉड्स, जिनकी आपूर्ति सामान्यतया सीधी लम्बाई अथवा लिपटे हुए बंडलों में की जाती है। सिविल निर्माण-कार्यों में इनका सीधे उपयोग किया जाता है।
- वायर रॉड्स: क्वाइल रूप में हॉट रोल्ड प्लेन बार/राड्स (अर्थात दन्तुरीकरण के बिना), जिसका उपयोग सामान्यतया इस्पात की तारें बनाने और कभी-कभी स्टील ब्राइट बार्स बनाने के लिए किया जाता है।
- एंग्ल्स, आकृति और सेक्शन: ब्लूम्स/बिलेट्स की हॉट रोलिंग द्वारा प्राप्त हॉट रोल्ड स्ट्रक्चरल सेक्शंस। इनमें एंगल, चैनल, ग्राइडर्स, कडि़यां, आई.बीम, एच.बीम आदि शामिल हैं जिनका उपयोग सिविल/यांत्रिक निर्माण-कार्यों के लिए किया जाता है।
- पटरियां: ब्लूम्स/बिलेट्स की हॉट रोलिंग से प्राप्त हॉट रोल्ड रेल सेक्शंस। रेल की पटरियों/ट्राम की पटरियों में इस्तेमाल किया जाता है जिस पर रेल/ट्राम चलती है।
- तारें: तारों का उत्पादन कार्य डाई के जरिए तारों की छड़ों की कोल्ड ड्राइंग द्वारा किया जाता है। इनकी आपूर्ति सामान्यतया क्वाइल्स में की जाती है।
- ब्राइट बार्स: ये कोल्ड ड्रॉन/ग्राउंड/पील्ड प्लेन बार्स है जिनका हॉट रोल्ड प्लेन बार्स/वायर राड्स से उत्पादन किया जाता है (ये इस्पात मंत्रालय के कार्य क्षेत्र में नहीं आती हैं बल्कि औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग के कार्य क्षेत्र में आती हैं)।
फ्लैट उत्पाद (फ्लैट रोल्ड उत्पाद):
फ्लैट रोल्स का उपयोग करके रोलिंग मिलों में स्लैब्स/पतले स्लैब्स से उत्पादित फिनिश्ड इस्पात थिन फ्लैट उत्पाद। इनकी आपूर्ति आवश्यकता के अनुसार हॉट रोल्ड (एचआर), कोल्ड रोल्ड (सीआर) अथवा कोटिड स्थिति में की जाती है।
फ्लैट उत्पादों की विभिन्न किस्में निम्नलिखित हैं:
- प्लेट: ये + 500 मि.मी. चौड़े और (+ ) 5 मि.मी. मोटे फ्लैट फिनिश्ड उत्पाद हैं जिनकी आपूर्ति कट/सीधी लम्बाई में की जाती है। सामान्यतया प्लेटों का उत्पादन/आपूर्ति विशिष्ट ऊष्मा उपचार के साथ या उसके बिना हॉट रोल्ड स्थिति में की जाती है।
- शीट: ये + 500 मि.मी. चौड़े और (+ ) 5 मि.मी. मोटे थिन फ्लैट इस्पात उत्पाद हैं जिनकी आपूर्ति कट/सीधी लम्बाई में की जाती है। शीटों का उत्पादन/आपूर्ति हॉट रोल्ड/कोल्ड रोल्ड/कोटिड स्थिति में की जाती है और तदनुसार इन्हें हॉट रोल्ड (एचआर) शीट या कोल्ड रोल्ड (सीआर) शीट या कोटिड शीट कहा जाता है।
- स्ट्रिप्स: ये हॉट/कोल्ड/कोटिड फ्लैट रोल्ड उत्पाद हैं। इनकी आपूर्ति सुपर परतों की नियमित लिपटी क्वाइल्स में की जाती है। तदनुसार, इन्हें एचआर स्ट्रिप्स या सीआर स्ट्रिप्स या कोटिड स्ट्रिप्स कहा जाता है। चौड़ाई के अनुसार, स्ट्रिप्स को निम्नानुसार चौड़ी स्ट्रिप या सीमित स्ट्रिप में उप-वर्गीकृत किया जाता है:
- चौड़ी स्ट्रिप: 600 मि.मी. या इससे चौड़ी स्ट्रिप। भारत में इसे क्वाइल और यूरोप आदि में इसे वाइड क्वाइल्स कहा जाता है। तदनुसार, इनके लिए एचआर क्वाइल्स/वाइड क्वाइल्स या सीआर क्वाइल्स/वाइड क्वाइल्स आदि शब्द आम तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं।
- सीमित स्ट्रिप: 600 मि.मी. से कम चौड़ी स्ट्रिप्स।
हॉट रोल्ड (एचआर) फ्लैट उत्पाद का उत्पादन प्लेट मिलों (जो प्लेटों का उत्पादन करती हैं) या हॉट स्ट्रिप मिल्स (जो स्ट्रिप्स का उत्पादन करती हैं) में ऊंचे तापमान (1000 डिग्री सें. से अधिक) पर स्लैब्स/थिन स्लैब्स की रि-रोलिंग द्वारा किया जाता है। सीआर शीट का उत्पादन करने के लिए सीआर स्ट्रिप काटी जाती हैं। कम मोटाई, बेहतर/चमकीली फिनिश, कम आयामी सह्यता और विशिष्ट यांत्रिक/धातुकर्मीय विशेषताओं द्वारा सीआर स्ट्रिप्स/शीटों की अभिलक्षणा की जाती है। इनका उपयोग सीधे आटोमोबाइल्स (कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल आदि), व्हाइट गुड्स, उपभोक्ता वस्तुओं आदि में या कोटिड शीट उत्पादों के उत्पादन में किया जाता है।
कोल्ड रोल्ड शीटों/स्ट्रिप्स की आपूर्ति उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुसार रोल्ड स्थिति (सीआरएफएच-कोल्ड रोल्ड फुल हार्ड) या पूर्ण तापानुशीतित (सीआरसीए-कोल्ड रोल्ड पूर्ण तापानुशीतित) स्थिति में या पूर्ण तापानुशीतित और स्किन पास्ड/टेम्पर पास्ड स्थिति में की जाती है।
डी/डीडी/आईएफ इस्पात:
टिन मिलों में प्रयुक्त विशेष रसायन संयोजन के साथ कोल्ड रोल्ड शीटों/स्ट्रिप्स की विशेष किस्मों को टिन मिल ब्लैक प्लेट (टीएमबीपी) कहा जाता है।
- कोटिड उत्पाद: धातु या कार्बनिक रसायनों के साथ कोटिड कोल्ड रोल्ड उत्पाद निम्नलिखित हैं:
- गलवेनाइज्ड प्लेन/कोरूगेटिड (जीपी/जीसी) शीट: ये जस्ता धातु के साथ कोटिड कोल्ड रोल्ड शीटें/स्ट्रिप्स होती हैं। प्रक्रिया को गलवेनाइजिंग कहा जाता है। इनका उपयोग छतों, पेनल आदि बनाने के लिए किया जाता है।
जीपी शीटों का उत्पादन सामान्यतया द्रव्य जस्ता में सीआर शीटों/स्ट्रिप्स को डुबो कर हॉट डीप गलवेनाइजिंग द्वारा किया जाता है। जीसी शीटों का उत्पादन कोरूगेटिंग मशीन में जीपी शीटों को कोरूगेट करके किया जाता है। जीपी शीटों का उत्पादन सीआर शीटों/स्ट्रिप्स पर जस्ते की इलेक्ट्रोप्लेटिंग द्वारा भी किया जाता है। इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रो-गलवेनाइजिंग कहते हैं। यद्यपि भारत में इस प्रक्रिया का अनुसरण नहीं किया जाता है।
गलवेनाइज्ड शीटों का उपयोग मुख्य रूप से छतों, पेनलों, ऑटोमोबाइल की बाडी, ट्रंक/बक्सों आदि के बनाने में किया जाता है।
- टिनप्लेट: रांगा (टिन) धातु के साथ कोटिड टीएमबीपी। कन्टेनरों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है।
- टिन फ्री स्टील: क्रोमियम धातु और क्रोमियम ऑक्साइड से कोटिड टीएमबीपी शीट/स्ट्रिप्स।
- रंग कोटिड उत्पाद: पीवीसी/प्लास्टिक्स या किसी अन्य कार्बनिक धातु से कोटिड कोल्ड रोल्ड/गलवेनाइज्ड इस्पात शीट/स्ट्रिप्स। इस प्रक्रिया को कलर कोटिंग कहा जाता है। इसका उपयोग फर्नीचर, ऑटो बाडी, छत, पेनल आदि के निर्माण में किया जाता है।
- टेरनी प्लेट: रांगा या सीसा के अलॉय से कोटिड कोल्ड रोल्ड स्टील शीट्स/स्ट्रिप्स। आटोमोबाइल्स की पेट्रोल की टंकी बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। भारत में इसका उत्पादन नहीं होता है।
गेलफन अलॉय कोटिड शीट: ये जस्ता-अल्यूमीनियम अलॉय, जिसमे 95 प्रतिशत जस्ता और 5 प्रतिशत अल्युमीनियम होता है, के साथ कोटिड सीआर शीट्स/ स्ट्रिप्स होती हैं। इनका उपयोग जीपी/जीसी शीटों के समान किया जाता है लेकिन इनकी मियाद ज्यादा होती है और इसकी बेहतर संक्षारण विशेषताएं होती हैं।
गलवाल्यूम अलॉय कोटिड शीट: ये लगभग 55 प्रतिशत अल्युमीनियम और लगभग 45 प्रतिशत जस्ता और मामूली मात्रा में सिलिकॉन से युक्त अलॉय के साथ कोटिड सीआर शीट/स्ट्रिप होती हैं। इनका उपयोग जीपी/जीसी शीटों के समान किया जाता है लेकिन इनकी मियाद ज्यादा होती है और उच्च तापमान के संबंध में इनका निष्पादन बेहतर होता है।
क्रूड स्टील: अंतर्राष्ट्रीय तौर पर इस शब्द का अभिप्राय द्रव्य इस्पात के घनीभवन से प्रथम ठोस इस्पात उत्पाद से है। दूसरे शब्दों में, इसमें इनगॉट्स (पारम्परिक मिलों में) और सेमिस (लगातार ढलाई सुविधा वाली आधुनिक मिलों में) होता है।
अंतर्राष्ट्रीय लोहा और इस्पात संस्थान (आईआईएसआई) के अनुसार, सांख्यिकी प्रयोजनों के लिए, क्रूड स्टील में द्रव्य स्टील भी होता है जिससे स्टील कास्टिंग्स का उत्पादन होता है।
बिक्री योग्य इस्पात: इस शब्द का उपयोग ठोस इस्पात के विभिन्न किस्म के उत्पादों के लिए किया जाता है जो बाहरी ग्राहकों को पुन: प्रसंस्करण के लिए या सीधे उपयोग/खपत के लिए बेचे जाते हैं। अत: इनमें इनगॉट्स और/अथवा सेमिस और/अथवा फिनिश्ड इस्पात उत्पाद शामिल होते हैं। (द्रव्य इस्पात की सामान्यतया बिक्री नहीं की जाती है)।
संयोजन के अनुसार स्टील:
- अलॉय स्टील:
यह विशेष भौतिक, यांत्रिक, धातुकर्मीय और वैद्युत विशेषताएं प्रदान करने के लिए विशिष्ट अनुपात में एक या एक से अधिक मिश्रित तत्वों की अभिप्रेत मात्रा के साथ उत्पादित किया जाने वाला स्टील है।
सामान्यतया मिश्रित किए जाने वाले तत्व मेंगनीज, सिलिकॉन, निकल, सीसा, ताम्बा, क्रोमियम, टंगस्टेन, मॉलीबडेनम, नियोबियम, वेनाडियम आदि हैं।
अलॉय स्टील के कुछ सामान्य उदाहरण निम्नलिखित हैं:
(क) स्टेनलेस स्टील: इसमें अनिवार्य रूप से निकल या मिश्रित किए जाने वाले अन्य अवयवों के साथ या उनके बिना क्रोमियम (सामान्यतया 10.5 प्रतिशत से अधिक) होता है। जैसाकि नाम से पता चलता है, स्टेनलेस स्टील अभिरंजन/संक्षारण का प्रतिरोधक है ओर उच्च तापमान पर इसमें मजबूती बनी रहती है।
इसका बर्तन बनाने, वास्तुशिल्पीय और औद्योगिक उपयोगों अर्थात आटोमोटिव और खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों तथा चिकित्सा और स्वास्थ्य उपकरण बनाने में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
स्टेनलेस स्टील के सामान्यतया उपयोग में आने वाले ग्रेड निम्नलिखित हैं:
- टाइप 304: क्रोम-निकल ऑस्टेनेटिक स्टेनलेस स्टील का उत्पादन विश्व में उत्पादित किए जाने वाले स्टेनलेस स्टील का आधे से अधिक है। बर्तन बनाने के लिए 18:8 स्टेनलेस स्टील का उपयोग इसका सामान्य उदाहरण है।
- टाइप 316: क्रोम-निकल (ऑस्टेनेटिक) स्टेनलेस स्टील, जिसमें 2-3 प्रतिशत मॉलीबडेनम होता है, विशिष्ट औद्योगिक उपयोग के लिए है।
- टाइप 410: यह आपवादिक मजबूती के साथ प्लेन क्रोमियम (मार्टन सिटिक) स्टेनलेस स्टील है। इसकी लागत कम होती है और गैर-संक्षारण उपयोगों के लिए ऊष्मा उपचार योग्य ग्रेड है।
- टाइप 430: यह प्लेन क्रोम (फेरिटिक) स्टेनलेस स्टील है जो अक्सर सजावटी उपयोगों के लिए संक्षारण प्रतिरोध के सामान्य प्रयोजनों के लिए है।
- टाइप 201/202 आदि: यह कम निकल (ऑस्टेनेटिक) स्टेनलेस स्टील है जिसमें 2-5 प्रतिशत निकल होता है। इसका उपयोग बर्तन बनाने के लिए टाइप 304 ग्रेड के सस्ते प्रतिस्थानी के रूप में किया जाता है।
(ख) सिलिकान-इलेक्ट्रिकल स्टील: इसमें सामान्यतया 0.6 -6 प्रतिशत सिलिकान होता है और इसमें कुछ चुम्बकीय विशेषताएं होती हैं जिससे यह ट्रांसफार्मर्स, पावर जेनरेटर्स और इलेक्ट्रिक मोटरें बनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी आपूर्ति सामान्यतया दो श्रेणियों में की जाती है:
i) सीआरजीओ: यह कोल्ड रोल्ड ग्रेन अभिमुख सिलिकान-इलेक्ट्रिकल स्टील शीट्स/स्ट्रिप्स है जिनकी सामान्यतया ट्रांसफार्मर्स और जेनरेटर्स में उपयोग करने की संस्तुति की जाती है।
- सीआरएनओ/सीआरएनजीओ: यह कोल्ड नॉन-ग्रेन अभिमुख सिलिकान-इलेक्ट्रिकल स्टील शीट्स/स्ट्रिप्स है जिनकी सामान्यतया इलेक्ट्रिक मोटरों के रूप में रोटेटिंग मशीनों में उपयोग करने की संस्तुति की जाती है।
(ग) हाईस्पीड स्टील: अलॉय स्टील में टंगस्टन, वेनाडियम, क्रोमियम, कोबाल्ट और अन्य धातुएं होती हैं। संयोजन पर निर्भर करते हुए, इनका कोबाल्ट ग्रेड और नॉन-कोबाल्ट ग्रेड में वर्गीकरण किया जाता है। काटने वाले औजारों का विनिर्माण करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है।
2. नॉन-अलॉय/कार्बन स्टील/प्लेन कार्बन/अन-अलॉयड स्टील:
परिभाषा द्वारा इस प्रकार के स्टील में विशिष्ट अनुपात में कोई मिश्रित तत्व नहीं होता है (अर्थात उन्हें छोड़कर जो सामान्यतया उद्योग में वाणिज्यिक रूप से उत्पादित इस्पात में मौजूद होते हैं)।
नॉन-अलॉय स्टील को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, नामत:
- लो कार्बन स्टील या नाम (माइल्ड) स्टील (इसमें सामान्यतया 0.3 प्रतिशत तक कार्बन होता है)
- मीडियम कार्बन स्टील (इसमें सामान्यतया 0.3- 0.6 प्रतिशत तक कार्बन होता है)
- हाई कार्बन स्टील (इसमें सामान्यतया 0.6 प्रतिशत तक कार्बन होता है)
स्टील के कुल उत्पादन में नॉन-अलॉय स्टील लगभग 90 प्रतिशत होते हैं जिनमें नरम स्टील का हिस्सा बहुत अधिक होता है।
3. विशेष स्टील
इस स्टील के उत्पादन में विशेष ध्यान रखना होता है ताकि सफाई, सतह की गुणवत्ता और यांत्रिक/धातुकमी्रय विशेषताओं जैसी विशेष/वांछित विशेषताएं
उसमें हों।
आम आदमी की भाषा में, नरम स्टील को छोड़कर सभी प्रकार के स्टील विशेष स्टील की श्रेणी में आते हैं। लेकिन धातुकर्मीय दृष्टि से, यदि स्टील में विहित कोई विशेष विशेषता है तो नरम स्टील/लो कार्बन स्टील भी, जिसमें 0.25%/0.30% से कम कार्बन है, विशेष स्टील की श्रेणी के अधीन आएगा। डीडी/ईडीडी स्टील, फोर्जिंग क्वालिटी स्टील, फ्री कटिंग स्टील आदि इसके उदाहरण हैं।
अंतिम उपयोग के आधार पर स्टील का वर्गीकरण:
उपयोग के संबंध में स्टील को अक्सर स्ट्रक्चरल स्टील, कंस्ट्रक्शन स्टील, डीप ड्राइंग स्टील, फोर्जिंग क्वालिटी, रेल स्टील आदि में वर्गीकृत किया जाता है।
iii) ‘ लौह अयस्क’ से संबंधित शब्द
लौह अयस्क:
परिभाषा: यह प्राकृतिक रूप में निकलने वाला एक खनिज है जिसमें से आयरन (एफई) धातु का निष्कर्षण विभिन्न रूपों अर्थात हॉट मेटल/डीआरआई आदि में किया जाता है।
अयस्क की किस्में: लोहा बनाने के लिए दो प्रमुख किस्मों अर्थात हेमाटाइट अयस्क (जिसमें फेरिक ऑक्साइड- एफई 203 होता है) और मेग्नाटाइट अयस्क (जिसमें फेरो-फेरिक ऑक्साइड- एफई 304 होता है) का उपयोग किया जाता है। जब रासायनिक रूप से इन्हें शुद्ध किया जाता है तब हेमाटाइट में लगभग 70 प्रतिशत और मेग्नाटाइट में 72.4 प्रतिशत आयरन होता है। लेकिन आम तौर पर अयस्कों में आयरन तत्व 50- 65/67% (समृद्ध अयस्क) और 30- 35% (कम अयस्क) की रेंज में होता है; शेष अशुद्धियां होती हैं जिन्हें गंगुई (जैसे अलुमीना, सिलिका आदि) और नमी कहा जाता है।
अयस्क के ग्रेड: लौह अयस्क को ठेठ रूप से उच्च ग्रेड (+65% लौहांश), मध्यम ग्रेड (+6 2-65% लौहांश) और निम्न ग्रेड (-62% लौहांश) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
ठेठ रूप में, एकीकृत इस्पात संयंत्र मध्यम/उच्च ग्रेड के लौह अयस्क का उपयोग करते हैं जबकि स्पंज आयरन संयंत्रों को केवल उच्च ग्रेड के लौह अयस्क, अधिमानत: 67% लौहांश के साथ, की जरूरत होती है।
लम्पी/फाइन अयस्क: लौह अयस्क की बिक्री लम्प्स (अर्थात साइज्ड ओर) या फाइंस में की जाती है। प्राकृतिक रूप से निकलने के कारण और रन-ऑफ-माइंस में मौजूद बड़े लम्प्स की क्रशिंग के दौरान बड़ी मात्रा में फाइंस बन जाने के कारण लम्प्स का उत्पादन/उपलब्धता सीमित होती है।
प्राकृतिक पेलेट: इस शब्द का प्रयोग एनएमडीसी जैसे उत्पादकों द्वारा स्पंज आयरन के उत्पादन में सीधे प्रयुक्त साइज्ड लौह अयस्क को नामित करने के लिए किया जाता है।
ब्लू डस्ट: ब्लू डस्ट का नाम प्राकृतिक रूप से निकलने वाले अत्यधिक भुरभुरे उच्च ग्रेड के हेमाटाइट लौह अयस्क के पाउडर को दिया गया है।
अयस्क का बेनिफिसिएशन: अत्यधिक निम्न ग्रेड के लौह अयस्क का धातुकर्मीय संयंत्रों में उपयोग नहीं किया जा सकता है और लौह तत्व में वृद्धि करने के लिए इसे अपग्रेड किए जाने और गॉज तत्व को कम किए जाने की जरूरत होती है। अपग्रेड करने की प्रक्रिया को बेनिफिसिएशन कहा जाता है।
भारतीय लौह अयस्क: भारतीय लौह अयस्क में आम तौर पर आयरन (एफई) तत्व प्रचुर मात्रा में होता है लेकिन उसमें अलुमिना तत्व बहुत अधिक होता है जिसके लिए उत्पादकता और गुणवत्ता की लागत पर और इस प्रकार धनराशि की लागत पर आयरन/स्टील का उत्पादन करने के लिए विशेष समायोजन/तकनीकों की आवश्यकता होती है।
केआईओसीएल का बेनिफिसिएशन: केआईओसीएल ने लगभग 35 प्रतिशत लौहांश को उच्च ग्रेड के लौह अयस्क सांद्रणों के साथ मेग्नेटाइट को बेनिफिसिएट करने के लिए एक बेनिफिसिएशन प्लांट स्थापित किया है। इन सांद्रणों का उपयोग प्लांट में पेलेट का उत्पादन करने के लिए भी किया जाता है और इसके एक भाग का निर्यात किया जाता है।
लौह अयस्क का संचयन: लौह अयस्क फाइंस/ब्लू डस्ट को सीधे धमन भट्टी में चार्ज नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे फी के अन्दर गैस के चढ़ने का मार्ग अवरूद्ध करते हैं। इसलिए, वे लाइमस्टोन, डोलोमाइट आदि जैसे योज्यों के संयोजन के साथ/बिना बड़े लम्पी टुकड़ों में संचित (कम तापमान पर प्रज्वलन द्वारा जिसके कारण केवल इंटरफेशियल फ्यूजन होता है) किए जाते हैं।
उद्योग में आम तौर पर दो प्रकार के संचित उत्पाद उत्पादित/इस्तेमाल होते हैं, नामत: सिंटर और पेलेट। तदनुसार, प्रक्रियाओं को क्रमश: सिंटरिंग और पेलेटाइजेशन कहा जाता है।
(क) सिंटर: सिंटर एग्रीगेट जैसा एक क्लिंकर होता है जिसका उत्पादन सामान्यतया कोक ब्रीज (-3 एमएम), लाइमस्टोन डोलोमाइट फाइंस (-3 एमएम) और संयंत्र से अन्य वापस आने वाले धातुकर्मी अपशिष्ट पदार्थों से मिश्रित संगत कोयरसर फाइन लौह अयस्क (सामान्यतया -3 एमएम) से होता है।
धमन भट्टियों में सिंटर एक अत्यधिक तरजीही आदान/कच्चा माल है। इससे धमन भट्टी के परिचालन में सुधार होता है और उत्पादकता में वृद्धि होती है और धमन भट्टी में कोयले की कम खपत होती है। इस समय विश्व में 70 प्रतिशत हॉट मेटल का उत्पादन (भारत में 50 प्रतिशत) सिंटर के जरिए होता है।
(ख) पेलेट: पेलेट्स का उत्पादन सामान्यतया बहुत अधिक फाइन लौह अयस्क (सामान्यतया -100 मेश) से ग्लोबल्स के रूप में किया जाता है और इसका उपयोग अधिकांशत: गैस आधारित संयंत्रों में स्पंज आयरन का उत्पादन करने के लिए किया जाता है, हालांकि कुछ देशों में साइज्ड लौह अयस्क की बजाय धमन भट्टियों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
(iv) ‘ कोयला/कोक’ से संबंधित शब्द:
कोयला:
परिभाषा: कोयला प्राकृतिक रूप से निकलने वाली ज्वलनशील चट्टान है जिसमें 70 प्रतिशत (परिमाण द्वारा) कार्बनसियस सामग्री है जिसमें नमी शामिल है।
परिपक्वता के स्तर के आधार पर वर्गीकरण: परिपक्वता/मेटामोरफिजम के स्तर पर निर्भर करते हुए, कोयले को 3 मुख्य श्रेणियों के अधीन वर्गीकृत किया जाता है, अर्थात लिगनाइट/ब्राउन कोल, बिटुमाइनस, एन्थरासाइट कोयला।
विशेषताओं के आधार पर वर्गीकरण: कोयले को विशेष विशेषताओं के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जैसाकि उनके रैंक (जो परिपक्वता/मेटामोरफिजम की डिग्री का माप है), किस्म (विट्रीनाइट, लिप्टीनाइट और इनर्टीनाइट, जो उस सामग्री के 3 मुख्य वर्ग हैं जिनसे कोयला बनता है) और ग्रेड (अशुद्धियों और केलोरीफिक वैल्यू पर निर्भर करते हुए) द्वारा परिभाषित किया गया है।
कोयले का उपयोग: प्राकृतिक कोयला सामान्यतया काफी सघन (डेंस) और/अथवा भुरभुरा होता है और धमन भट्टी जैसे धातुकर्मीय संयंत्रों में ईंधन/रिडक्टेंट के रूप में इसका उपयोग सीमित होता है। तथापि, प्राकृतिक कोयले की कुछ विशिष्ट किस्मों (निर्दिष्ट आकार रेंजों में क्रश और स्क्रीन किया गया) का उपयोग अन्य धातुकर्मीय प्रचालनों में सीधे किया जाता है (जैसे कोरेक्स प्लांट, धमन भट्टी में कोल डस्ट इंजेक्शन/चूर्णित कोल इंजेक्शन आदि)।
कोकिंग/नॉन-कोकिंग कोल: कोकिंग विशेषताओं के आधार पर, कोयले को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, नामत: कोकिंग कोल और नॉन-कोकिंग कोल। भाप/विद्युत उत्पादन के लिए प्रयुक्त स्टीम कोयला नॉन-कोकिंग कोल के व्यापक समूह के अंतर्गत आता है।
परिभाषा: कोंकिंग-कोल कोयले की वे किस्में हैं जो वायु की गैर-मौजूदगी में गर्म करने पर (इस प्रक्रिया को कार्बनाइजेशन कहते हैं) प्लास्टिक अवस्था में रूपांतरित हो जाती हैं, फैल जाती हैं और कोयला देने के लिए पुन: ठोस बन जाती हैं। ठंडा होने पर यह केक एक मजबूत और सूक्ष्मरंध्र मास में बदल जाता है जिसे कोक कहते हैं।
प्राइमरी/मीडियम/सेमी/वीक कोकिंग कोल: कोकिंग-कोल को 3 उप-श्रेणियों में बांटा जाता है, नामत: प्राइमरी कोकिंग कोल (कम राख, कम वोलाटाइल, उच्च कोकिंग विशेषता), मीडियम कोकिंग कोल (कम राख, मध्यम वोलाटाइल, कम कोकिंग इंडेक्स) और सेमी/वीक कोकिंग कोल (कम राख, अधिक वोलाटाइल, बहुत कम कोकिंग इंडेक्स)।
बीएफ कोक के लिए कोकिंग कोल की विशेषताए: बीएफ कोक के उत्पादन के लिए कोकिंग कोल की (जो धमन भट्टी के लिए आवश्यक ईंधन/रिडक्टेंट की एक उपयुक्त किस्म है) उपयुक्त संयोजन (नामत: कम राख (10 प्रतिशत अधिकतम), वोलाटाइल तत्व (20-26 प्रतिशत) और बहुत कम सल्फर और फास्फोरस तत्व, कोयले का उपयुक्त रैंक (1-1.3), अच्छी रियोलॉजीकल विशेषताओं, तरलता की व्यापक रेंज, कम इनर्ट तत्व आदि के संदर्भ में कुछेक विशिष्ट विशेषताओं द्वारा अभिलक्षणा की जाती है।
भारतीय कोकिंग कोल: गोंडवाना पट्टी (बिहार और पश्चिम बंगाल क्षेत्र) में पाये जाने वाले भारतीय कोकिंग कोल में काफी अधिक राख (17 प्रतिशत या अधिक) होती है और उसका रैंक और अन्य विशेषताएं अच्छी नहीं हैं जिसके परिणामस्वरूप धमन भट्टी में कम उत्पादकता और कोयले की अधिक खपत होती है। यद्यपि, असम कोकिंग कोल में कम राख होती है और उसमें काफी अधिक सल्फर होता है जिसके कारण धमन भट्टी में लोहा बनाने में उसका उपयोग सीमित हो जाता है।
कोयले की धुलाई: चूंकि भारतीय कोयले में राख की मात्रा काफी अधिक होती है, इसलिए राख की मात्रा को कुछ हद तक कम करने के लिए उसकी धुलाई करनी पड़ती है। तथापि, भारतीय कोयला अपनी धुलाई के संदर्भ में अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि राख और इनर्ट उचित और फाइंस रूप से कोल मेट्रिक्स में चले जाते हैं जिसके कारण धुलाई कठिन हो जाती है।
कोयले का मिश्रण: अच्छी किस्म के कोकिंग कोल की सीमित उपलब्धता के कारण, भारतीय इस्पात संयंत्र आवश्यक विशेषताओं के साथ कोयला विशेष की कम प्रतिपूर्ति करने के लिए कोकिंग कोल की 3 या अधिक किस्मों का इष्टतम मिश्रण करते हैं। कोयला मिश्रण का चयन करने में अन्य महत्वपूर्ण विचार यह है कि इसे अधिक कोक ओवन वाल प्रेशर का प्रयास नहीं करना चाहिए और इसके ओवन से केक/कोक को बाहर धकेलने के लिए पर्याप्त रूप से सिकुड़ना चाहिए।
कोक: कोक एक अपशिष्ट ठोस उत्पाद है जो कोकिंग कोल के कार्बनीकरण से प्राप्त होता है। विशेषता के अनुसार कोक को हार्ड कोक, सॉफ्ट कोक और धातुकर्मी कोक कहा जाता है।
धातुकर्मी कोक: धातुकर्मीय प्रचालनों में सभी प्रकार के कोक का उपयोग नहीं किया जा सकता है जिसके लिए कोकिंग कोल के विशिष्ट मिश्रण से बनाया गया अच्छी क्वालिटी का कोक होना आवश्यक है। ऐसे कोक को धातुकर्मीय कोक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
धमन भट्टी (बीएफ) कोक: यह शब्द ऐसे धातुकर्मीय कोक के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है जो धमन भट्टी में लोहा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। धमन भट्टी कोक धमन भट्टी प्रचालन में तीन मुख्य कार्यों को पूरा करता है:
- यह सभी प्रतिक्रियाओं के लिए ऊष्मा प्रदान करने वाले ईंधन के रूप में कार्य करता है।
- यह लौह अयस्क के रिडक्शन के लिए कार्बनडाइऑक्साइड गैस एंक कार्बन प्रदान करने के लिए एक डिडक्टेंट के रूप में कार्य करता है; और
- यह धमन भट्टी के अंदर लौह अयस्क, कोक और लाइमस्टोन की तह के जरिए गैसों के संचलन के लिए अपेक्षित प्रवेश्य मुहैया करता है।
निम्नलिखित पैरामीटरों द्वारा धमन भट्टी कोक की अभिलक्षणा की जाती है:
- विहित आकार रेंज (25/40- 80 मि.मी.),
- अधिक निर्धारित कार्बन (80-85 प्रतिशत),
- कम राख (10-15 प्रतिशत राख),
- कम वोलाटाइल तत्व (2 प्रतिशत अधिकतम),
- कम क्षार,
- कम सल्फर (0.7 प्रतिशत अधिकतम),
- कम फास्फोरस (0.3 प्रतिशत अधिकतम),
- उच्च स्ट्रेन्थ/घिसाई प्रतिरोध (माइकम इंडेक्स के संदर्भ में नापना (अर्थात एम10 वैल्यू 10 प्रतिशत अधिकतम और एम40 वैल्यू 75/80 प्रतिशत न्यूनतम),
- प्रतिक्रिया के पश्चात उपयुक्त कोक स्ट्रेन्थ (सीएसआर:50-60), और
- उपयुक्त प्रतिक्रिया क्षमता (सीआरआई: 25 से कम)
ये अभिलक्षणाएं न केवल कोयले की विशेषताओं पर निर्भर करती हैं बल्कि कोकिंग प्रौद्योगिकी/पैरामीटरों तथा उसके लिए अपनाई गई कार्बनीकरण-पूर्व और कार्बनीकरण-उपरांत तकनीकों पर भी निर्भर करती है।
राख के प्रतिकूल प्रभाव: धमन भट्टी की उत्पादकता पर और धमन भट्टी में कोक की खपत पर राख का अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। राख में एक निश्चित सीमा से 1 प्रतिशत अधिक की वृद्धि के परिणामस्वरूप कोक की खपत लगभग 45 प्रतिशत बढ़ जाती है और धमन भट्टी की उत्पादकता लगभग 3-6 प्रतिशत कम हो जाती है।
भारतीय एकीकृत इस्पात संयंत्र सामान्यतया उत्पादकता और ऊर्जा खपत आदि की लागत पर स्वयं बनाए गए अधिक राख वाले कोक का उपयोग करते हैं। तथापि, मिनी धमन भट्टी यूनिट मुख्य रूप से चीन से या अन्य स्रोतों से आयात किए गए कम राख वाले धातुकर्मीय कोक का उपयोग करते हैं।
नॉन-कोकिंग कोल (एनसीसी):
इस कोक की कोकिंग विशेषताएं खराब होती हैं अर्थात ये नरम नहीं होते हैं और ये कोक ओवन में कार्बनीकरण के दौरान कोकिंग कोल जैसे केक बनाते हैं। अपेक्षाकृत कम राख और अपेक्षाकृत अधिक निर्धारित कार्बन के साथ ऐसे कोयले का उपयोग धातुकर्मीय प्रयोगों अर्थात कोरेक्स प्रौद्योगिकी आधारित आयरन (पिग आयरन) प्लांट्स, कोयला आधारित डीआरआई प्लांट्स आदि में किया जाता है जबकि अपेक्षाकृत अधिक राख वाले कोयले का उपयोग सामान्यतया ताप-विद्युत संयंत्रों में भाप कोयले के रूप में किया जाता है।
नॉन-कोकिंग कोल को उसके ऊष्मा मान, जो कार्बन का एक भाग है, और वोलाटाइल तत्व तथा कोयले में राख तत्व के आधार पर ए,बी,सी,डी,ई और एफ ग्रेडों में वर्गीकृत किया जाता है।
कोक ओवन/कोक ओवन बैटरी: कोकिंग कोक को उन कोक ओवनों में कोक में परिवर्तित किया जाता है जो सिलिका रिफ्रैक्ट्री लाइंड ओवन/चेम्बर्स होते हैं। कोक ओवन बैटरियों में बहुत अधिक संख्या में ओवन होते हैं जो आगे-पीछे 50-70 होते हैं। ऐसी बैटरियां सामान्यतया सह-उत्पाद संयंत्रों से सम्बद्ध होती हैं जहां कार्बनीकरण के दौरान व्युत्पन्न कोयले के वोलाटाइल/गैसीय तत्वों से मूल्यवान अवयव प्राप्त किए जाते हैं। तदनुसार, ऐसे कोक-ओवन को नॉन-रिकवरी किस्म के कोक ओवनों की तुलना में, जिन्हें बी-हीव टाइप कोक ओवन भी कहा जाता है, सह-उत्पाद कोक ओवन बैटरी कहा जाता है।
कोकिंग समय: कोक ओवन में कोयले को कोक में परिवर्तित करने के लिए अपेक्षित समय को कोकिंग समय कहते हैं जो 15-20 घंटे की रेंज में होता है।
कोक की विभिन्न किस्मों का उत्पादन: एक टन सूखे कोयले से 75 प्रतिशत कोक का उत्पादन होता है। आकार की रेंज पर निर्भर करते हुए, कोक का निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकरण किया जाता है:
श्रेणी | उत्पादन | उपयोग |
बीएफ कोक (25/40-80 मि.मी.) | 85% | धमन भट्टी |
नट कोक (15-25 मि.मी.) | 5% | सिंटर प्लांट/फैरो अलॉय/ पिग आयरन उद्योग |
क्रोक ब्रीज (0-15 मि.मी.) | 10% | सिंटर प्लांट/सीमेंट उद्योग |
कोल डस्ट इंजेक्शन (सीडीआई)/चूर्णित कोल इंजेक्शन (पीसीआई): ये प्रौद्योगिकियां हैं जिनमें कोक की आवश्यकता के एक भाग की बजाए ब्लास्ट के साथ धमन-तंडुओं के माध्यम से धमन भट्टी में चूर्णित/दानेदार/डस्ट कोयला डाला जाता है।
- ‘ तकनीकी-आर्थिक पैरामीटरों’ से संबंधित शब्द:
ये ऐसे पैरामीटर हैं जिनका उपयोग सामान्यतया इस्पात संयंत्रों में लोहा और इस्पात बनाने की प्रक्रिया की प्रचालनात्मक दक्षता/प्रभावकारिता का आकलन करने के लिए किया जाता है। इस्तेमाल किए जाने वाले अत्यधिक कामन पैरामीटर निम्नलिखित हैं:-
- धमन भट्टी की उत्पादकता: इसका आकलन प्रति दिन, धमन भट्टी के आयतन के प्रति घन मीटर टनों में उत्पादित हॉट मेटल (टन/घन मी./दिन) के संदर्भ में किया जाता है।
- कोक दर: इसका आकलन धमन भट्टी में उत्पादित हॉट मेटल के लिए खपत किया गया प्रति टन बीएफ कोक के संदर्भ में किया जाता है (कि.ग्रा./टीएचएम)। पारम्परिक रूप में, इसमें सिंटर आदि में मिश्रित कोक (नट/पर्ल कोक) शामिल नहीं होता है।
- ऊर्जा की खपत: इसका आकलन उत्पादित प्रति टन क्रूड स्टील के उत्पादन में इस्तेमाल की गई गीगा केलोरी (अर्थात 1000 मिलियन टन केलोरी) (जी केलोरी/टीसीएस) के संदर्भ में किया जाता है।
- बिजली की खपत: इसका आकलन उत्पादित प्रति टन क्रूड स्टील के उत्पादन में इस्तेमाल की गई केडब्ल्यूएच में बिजली के यूनिटों (केडब्ल्यूएच/टीसीएस) के संदर्भ में किया जाता है।
- रिफ्रैक्ट्री खपत: इसका आकलन प्रति टन क्रूड स्टील के उत्पादन में खपत की गई कुल रिफ्रैक्ट्री के संदर्भ में किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर की तुलना में भारतीय संयंत्रों में उपर्युक्त पैरामीटरों (2002-03 के दौरान) का तुलनात्मक विवरण नीचे दिया गया है:
पेरामीटर | विश्व मानदंड | सेल (बीएसपी/डीएसपी/आरएसपी/ बीएसएल) | इस्को | वीएसपी | टिस्को |
बीएफ उत्पादकता (टी/एम3/दिन) | 2-3 | 1.51 (1.72/1.36/1.11/1.60) | 0.75 | 1.95 | 1.82 |
कोक दर (कि.ग्रा./टीएचएम) | 350400 | 538 (498/573/611/536) | 798 | 474 | 528 |
ऊर्जा की खपत (जी केलोरी /टीसीएस) | 4-5 | 7.5 (6.84/7.36/8.88/7.77) | 9.19 | 6.32 | 5.28 |
बिजली की खपत (केडब्ल्यूएच/ टीसीएस) | 400500 | 498 (460/430/602/505) | 500 | 540 | 430 |
रिफ्रैक्ट्री खपत (कि.ग्रा./टीसीएस) | 15 | 18.2 (20/16/23.8.14.9) | उ.न. | 18.5 | 13.6 |
(vi) विविध शब्द
फ्लक्सिस: लोहा/इस्पात बनाने में प्रयुक्त लाइमस्टोन, डोलोमाइट जो अवांछित अधात्री सामग्री/अशुद्धियों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और राख लौह चून को हटाते हैं।
फैरो अलॉय: इस्पात बनाने में डि-गैसिंग/डि-आक्सीडाइजिंग/अलॉय के लिए प्रयुक्त मास्टर अलॉयज। इसकी आम किस्में फैरो-सिलिकान, फैरो-मेंगनीज, सिलिको-मेंगनीज, फैरो-क्रोम, फैरो-निकल आदि हैं।
रिफ्रैक्ट्रीज: ऊष्मा प्रतिरोधक ब्रिक्स/शेप्स/मोनोलिथिक मास जिनका उपयोग रिएक्शन वैसलों/भट्टियों के निर्माण/लाइनिंग के लिए किया जाता है। इसकी आम किस्में सिलिका, मेग्नेसाइट, डोलोमाइट, अलुमीना, फायर-क्ले, मेग-कार्बन, मेग-क्रोम आदि हैं।
स्टील मैल्टिंग स्क्रैप: स्टील अपशिष्ट/स्क्रैप अपने मौजूदा रूप में उपयोग करने योग्य नहीं होता है जिसे द्रव्य इस्पात बनाने के लिए पुन: पिघलाया जाता है ताकि विभिन्न उत्पाद बनाए जा सकें। उनके रूप/किस्म पर निर्भर करते हुए, उन्हें हैवी मैल्टिंग स्क्रैप, लाइट मैल्टिंग स्क्रैप, टर्निंग्स/बोरिंग्स आदि में वर्गीकृत किया जाता है।
पुन: रोल करने योग्य स्क्रैप: सेकेंड्स और डिफेक्टिव उत्पाद, कटिंग्स/एंड कटिंग्स, इस्तेमाल की गई रेल्स जैसे प्रयुक्त इस्पात उत्पाद आदि जिनका निर्दिष्ट उपयोगों के लिए फिनिश्ड उत्पादों में रि-रोलिंग (दोबारा पिघलाए बिना) के लिए सीधे उपयोग किया जा सकता है। ये स्टील बिलेट्स/पेन्सिल इनगॉट्स के प्रतिस्थानी होते हैं। पोत भंजन से रि-रोल करने योग्य काफी अधिक स्टील स्क्रैप प्राप्त होता है।
हॉट रोलिंग: सेमिस से हॉट रोल्ड लम्बे उत्पादों/फ्लैट उत्पादों का उत्पादन करने के लिए इस्पात के पुन: क्रिस्टलीकरण तापमान (सामान्यतया 1000 सें. और उससे अधिक) पर इस्पात की रोलिंग। सेमिस प्राप्त करने के लिए इनगॉट्स को भी हॉट रोल किया जाता है। कभी-कभी बिलेट्स का उत्पादन करने के लिए ब्लूम्स को भी हॉट रोल किया जाता है। हॉट रोलिंग का उपयोग करने वाली रोलिंग मिलों को हॉट रोलिंग मिलें कहा जाता है।
कोल्ड रोलिंग: कोल्ड रोल्ड शीट्स/स्ट्रिप्स/क्वाइल्स का उत्पादन करने के लिए इस्पात के पुन: क्रिस्टलीकरण तापमान से कम ताप (आम तौर पर सामान्य तापमान पर) इस्पात (सामान्यतया फ्लैट उत्पादों) की रोलिंग। इस प्रयोजन के लिए कार्य करने वाली मिलों को कोल्ड रोलिंग मिल कहा जाता है।
2एचआई/4 एचआई/6 एचआई/20 एचआई मिलें: एक ही स्टैंड पर रोल्स के प्रबंधन/कान्फीग्रेशन में इस्तेमाल किए गए रोल्स की संख्या पर निर्भर करते हुए रोलिंग मिलों को 2-हाई/2 एचआई, 4 एचआई आदि में रोलिंग मिलों का श्रेणीकरण किया जाता है। उदाहरण के लिए, 2 एचआई मिल में 2 रोल होते हैं, एक ऊपर और अन्य को अपर और लोअर कहा जाता है। 4 एचआई मिल में, एक स्टैंड पर 4 रोल होते हैं- 2 अपर रोल, एक ऊपर और 2 लोअर रोल, एक ऊपर और एक अन्य।