सलाह के प्रयोजन से बोर्डों, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों का विवरण जिनमें दो या दो से अधिक व्यक्ति हैं और क्या इन बोर्डों, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों की बैठकों के बारे में जनता को जानकारी होती है और इन बैठकों के कार्यवृत्त तक जनता की पहुंच है।
- संयुक्त संयंत्र समिति
- आर्थिक अनुसंधान यूनिट
- फैरोस स्क्रैप समिति
- एसडीएफ प्रबंधन समिति
- इस्पात उपभोक्ता परिषद
- बीजू पटनायक राष्ट्रीय इस्पात संस्थान
- राष्ट्रीय सेकेंडरी इस्पात प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएसएसटी)
- इस्पात विकास एवं संवृद्धि संस्थान
संयुक्त संयंत्र समिति :-आशय-पत्रों की आयोजना और वितरण तथा रोलिंग कार्यक्रमों के संबंध में लोहा और इस्पात नियंत्रक के कार्य लेने के लिए 1964 में संयुक्त संयंत्र समिति स्थापित की गई थी। 1971 में जारी की गई एक अधिसूचना द्वारा संयुक्त संयंत्र समिति की भूमिका में संशोधन किया गया था। संयुक्त सचिव (इस्पात) संयुक्त संयंत्र समिति के अध्यक्ष हैं। संयुक्त संयंत्र समिति में सेल, टिस्को, आरआईएनएल और रेल मंत्रालय के प्रतिनिधि इसके सदस्यों के रूप में शामिल हैं। संयुक्त संयंत्र समिति के चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं जो कोलकाता, नई दिल्ली, चेन्नई और मुम्बई में हैं। इसका मुख्यालय कोलकाता में है।
विनियंत्रण और उदारीकरण के बाद, संयुक्त संयंत्र समिति के प्रारंभिक कार्य समाप्त कर दिए गए थे और संयुक्त संयंत्र समिति को अब मुख्य रूप से इस्पात क्षेत्र से संबंधित आंकड़ों के एकत्रण और विश्लेषण करने का कार्य सौंपा गया है। संयुक्त संयंत्र समिति को बढ़ावा देने के कार्य के जरिए इस्पात के उपयोग/खपत को बढ़ावा देने के उद्देश्य के उपाय करने और अध्ययन, सर्वेक्षण, सेमिनार, सम्मेलन आयोजित करने और सेक्टर विशेष का अध्ययन करने का कार्य भी सौंपा गया है। संयुक्त संयंत्र समिति इस्पात विकास निधि के लिए सचिवालय के रूप में भी कार्य करती है। संयुक्त संयंत्र समिति का सम्पूर्ण स्थापना संबंधी खर्च और अन्य संस्थानों, जैसे बीपीएनएसआई, एनआईएसएसटी और आईएनएसडीएजी को सहायता देने संबंधी खर्च जेपीसी लेखा सामान्य निधि के अधीन उपलब्ध धनराशि से प्राप्त ब्याज से पूरा किया जाता है। जेपीसी लेखा सामान्य निधि के अधीन धनराशि राष्ट्रीयकृत बैंकों में सावधि जमा के रूप में रखी जाती है।
इस संबंध में और अधिक ब्यौरे के लिए कृपया http://jpcindiansteel.nic.in/देखें।
II.आर्थिक अनुसंधान यूनिट आर्थिक अनुसंधान यूनिट संयुक्त संयंत्र समिति का एक भाग है और यह मुख्य रूप से संयुक्त संयंत्र समिति द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करने और मंत्रालय द्वारा इसे सौंपे गए विशिष्ट अध्ययन/विश्लेषण करने के लिए उत्तरदायी है। आर्थिक अनुसंधान यूनिट के अध्यक्ष मुख्य अर्थशास्त्री हैं।
आर्थिक अनुसंधान यूनिट का स्थापना संबंधी खर्च इस्पात विकास निधि से पूरा किया जाता है।
III. फैरोस स्क्रैप समिति(इससे संबंधित कार्य एमएफ डेस्क द्वारा किया जाता है)
फैरोस स्क्रैप समिति की स्थापना लोहा और इस्पात (नियंत्रण) आदेश, 1956 के अधीन 19 दिसम्बर, 1979 को की गई थी और डीसीआईएंडएस की अध्यक्षता में 28 जुलाई, 1997 को इसका पुनर्गठन किया गया था। इस्पात मंत्रालय के निदेशक (वित्त), शिपब्रेकर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और गुजरात तट बोर्ड के उपाध्यक्ष इस समिति के अन्य सदस्य हैं। फैरोस स्क्रैप समिति भंजन के लिए पुराने पोतों पर लगाए गए उपकर के जरिए सृजित निधि का संचालन करती है और इसका उद्देश्य देश में स्क्रैप की समग्र उपलब्धता में वृद्धि करना है। समिति को सचिवालय सहायता अब संयुक्त संयंत्र समिति द्वारा दी जा रही है। यह समिति स्क्रैप को हैंडल करने में सहायता देने के लिए कदम उठाती है और देश में फैरोस स्क्रैप को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
IV.एसडीएफ प्रबंधन समिति इस्पात विकास निधि के लिए संयुक्त संयंत्र समिति सचिवालय के रूप में कार्य करती है। इस्पात विकास निधि का प्रबंधन एक प्रबंध समिति द्वारा किया जाता है, जिसका गठन निम्नानुसार है:-
क्रमांक | विभाग | पद |
---|---|---|
1. | सचिव (इस्पात ) | अध्यक्ष |
2. | सचिव (व्यय) | सदस्य |
3. | सचिव (योजना आयोग) | सदस्य |
4. | विकास आयुक्त, लोहा और इस्पा | सदस्य-सचिव |
V. इस्पात उपभोक्ता परिषद: लोहा और इस्पात की आपूर्ति, उपलब्धता, गुणवत्ता और बाजार प्रवृत्तियों से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह और सहायता देने के लिए इस्पात मंत्री की अध्यक्षता में 1986 में इस्पात उपभोक्ता परिषद का गठन किया गया था। इस परिषद का कार्यकाल आरंभ में दो वर्ष के लिए निर्धारित किया गया था जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया है। मौजूदा इस्पात उपभोक्ता परिषद का कार्यकाल मंत्री द्वारा इस पद पर बने रहने तक है।
VI.बीजू पटनायक राष्ट्रीय इस्पात संस्थान:
इस्पात मंत्री द्वारा स्थापित टास्क फोर्स द्वारा तैयार की गई संकल्पना योजना के आधार पर, संयुक्त संयंत्र समिति के प्रबंधन के अधीन प्रशिक्षण-एवं-सेवा-एवं अनुसंधान और विकास केन्द्र के रूप में पुरी में एक राष्ट्रीय इस्पात संस्थान स्थापित करने का निर्णय किया गया था। यह संस्थान सोसाइटीज पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अधीन पंजीकृत है और इसने 01 जनवरी, 2001 से पुरी में पायलट आधार पर कार्य करना आरंभ किया था। प्रशिक्षण एवं अनुसंधान और विकास संबंधी आवश्यकताओं, मुख्य रूप से सेकेंडरी इस्पात क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक पूर्ण विकसित संस्थान स्थापित करने के लिए फरवरी, 2004 में मंत्रिमंडल का अनुमोदन प्राप्त किया गया था।
संयुक्त संयंत्र समिति के अध्यक्ष बीपीएनएसआई के भी अध्यक्ष हैं।
तेजी से हो रहे परिवर्तन, जो वैश्विक और भारतीय इस्पात उद्योग में हुए हैं, के साथ आगे-पीछे होने वाले घरेलू सेकेंडरी इस्पात उद्योग की सहायता करने के लिए बीजू पटनायक राष्ट्रीय इस्पात संस्थान की स्थापना की गई थी।
इस संबंध में और अधिक ब्यौरे के लिए कृपया http://www.bpnsi.org/देखें।
VII. राष्ट्रीय सेकेंडरी इस्पात प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएसएसटी) एनआईएसएसटी मंडी गोबिन्दगढ़, पंजाब में स्थित है और इसके दो क्षेत्रीय केन्द्र नागपुर और कोलकाता में हैं। इस संस्थान की स्थापना 18 अगस्त, 1987 को लोहा और इस्पात विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक सोसाइटी के रूप में की गई थी। एनआईएसएसटी की स्थापना मुख्य रूप से सेकेंडरी इस्पात क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की गई थी। सेकेंडरी इस्पात क्षेत्र के निम्नलिखित क्षेत्र इस संस्थान के कार्यक्षेत्र के अधीन आते हैं:-
- इलेक्ट्रिक आर्क और इंडक्शन फर्नेस
- लेडल रिफाइनिंगg
- लेडल रिफाइनिंग
- डाइरेक्ट रिड्यूस आयरन यूनिट
इस्पात मंत्रालय में संयुक्त सचिव, जो डीसी सैल/एसडी विंग का कार्य देखते हैं, एनआईएसएसटी के अध्यक्ष होते हैं। एनआईएसएसटी का प्रबंधन एक ‘ बोर्ड ऑफ गवनर्स’ द्वारा किया जाता है जिसमें उद्योग, शिक्षा संस्थाओं, औद्योगिक एसोसिएशनों और इस्पात मंत्रालय से सदस्य हैं। एनआईएसएसटी के लिए वित्तपोषण का एक प्रमुख भाग संयुक्त संयंत्र समिति की निधियों से पूरा किया जाता है।
इस संबंध में और अधिक ब्यौरे के लिए कृपया http://www.nisst.org/ देखें।
VIII. इस्पात विकास और संवृद्धि संस्थान इस्पात विकास और संवृद्धि संस्थान (आईएनएसडीएजी) की स्थापना करने की पहल इस्पात उत्पादकों ने की थी और यह संस्थान 26 अगस्त, 1996 को एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। इस संस्थान का उद्देश्य सभी हितधारकों के साथ तालमेल से कार्य करना है ताकि इस्पात का कुशल उपयोग करने और उपभोक्ताओं को इष्टतम वैल्यू मुहैया करने के लिए अर्थोपाय किए जा सकें।
संस्थान मुख्य रूप से इस्पात के उपयोग में प्रौद्योगिकी और इस्पात उत्पादकों के लिए बाजार विकास का कार्य करता है। आईएनएसडीएजी से उद्योग के अंशदान से विकास का कार्य करने की आशा की गई थी। तथापि, सदस्यता अंशदान धनराशि की कुल आवश्यकता का केवल 20 प्रतिशत है और शेष आवश्यकता जेपीसी से अनुदान के जरिए पूरी की जा रही है। आईएनएसडीएजी की स्थापना संबंधी लागत जेपीसी की निधियों से पूरी की जाती है।